भारत में बेरोज़गारी की भयानक हालतः डिग्री धारक युवा मामूली नौकरियां करने पर मजबूर

कोरोना की वैश्विक महामारी ने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है जो अभी तक लंबे लाक डाउन के विनाशकारी प्रभाव से उबर नहीं पायी है।
आर्थिक हालत में सुधार के इशारे तो मिल रहे हैं और इसकी वजह कई महीनों से रुकी हुई मांग में वृद्धि और सरकार की ओर से विकास परियोजनाओं पर किया जाने वाला ख़र्च है लेकिन देश से रोज़गार के अवसर विलुप्त हो गए हैं।
एक आज़ाद थिंक टैंक सेंटर फ़ार मानीट्रिंग इंडियन इकानोमी के अनुसार भारत में बेरोज़गारी दर दिसम्बर महीने में 8 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। यह सन 2020 और 2021 के सभी महीनों से ज़्यादा थी।
विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकानामिस्ट कौशिक बासू ने बताया कि भारत के इतिहास में बेरोज़गारी की दर कभी इतनी ज़्यादा नहीं रही, ख़ास तौर पर पिछले तीन दशकों यहां तक कि 1991 में भी यह हालत नहीं थी जब भारत के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा का भारी अभाव पैदा हो गया था।
दुनिया के बहुत से देशों में बेरोज़गारी है लेकिन भारत में यह दर बहुत सारे विकासशील देशों की तुलना में कहीं अधिक है। प्रोफ़ेसर बासू ने बताया कि बांग्लादेश में यह दर पांच दशमलव 3 प्रतिशत है।
अज़ीम प्रेमजी युनिवर्सिटी के शोध के अनुसार 15 से 23 साल के युवा सन 2020 में लाक डाउन से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए। इस युनिवर्सिटी के आर्थिक विशेषज्ञ अमित भोसले ने बताया कि जिन लोगों के पास मासिक वेतन वाली नौकरियां थीं उनमें से आधे अपनी नौकरियां बचा नहीं पाए।
विशेषज्ञ कहते हैं कि नौकरियों में भारी कमी की वजह केवल महामारी नहीं है बल्कि भारत में जो हालत हुई है उसकी एक वजह यह है कि नीतियां बनाने में छोटे कारोबार और मज़दूरों के कल्याण का ख़याल नहीं रखा गया।