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भगवान राम ने कन्नौज में गंगा नदी पर कराया था ब्राह्मणों को भोज, सीता माता ने पकाया था अपने हाथों से भोजन

रिपोर्ट:-रईस खान

अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर भूमि पूजन की तारीख जैसे जैसे करीब आती जा रही है वैसे वैसे इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज में भगवान श्री राम की यादें ताजा होती जा रही है। कन्नौज वासी बताते है कि पौराणिक नगरी कन्नौज का सम्बंध भगवान श्री राम से रहा है। भगवान श्री राम ने यहां गंगा नदी तट पर आकर ब्राह्मणों को भोज कराया था और सीता माता ने अपने हांथो से भोजन पकाया था। गंगा तट स्तिथ इस स्थान पर श्रद्धालुओं ने चिंतामणि मंदिर बना दिया था जहां आज भी भगवान श्री की चरण पादुका पूजी जाती है। मंदिर प्रांगण में हजारो साल से एक कदम्ब का पेड़ लगा हुवा है इस पेड़ की खाल छीलने पर राम लिखा हुवा मिलता है। कन्नौज मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर मोक्षदायिनी गंगा और काली नदी के तट स्तिथ चिंतामणि मंदिर में भगवान श्री राम की याद विराजमान है। मान्यता है कि इस जगह पर भगवान श्री राम ने अपने कदम रक्खे थे कालांतर में रामभक्तों ने इसे मंदिर का रूप दे दिया था।

जनश्रुति और मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम ने लंका पर विजय हासिल कर महापंडित रावण का वध किया था। जिसके बाद ब्रह्महत्या के दोष को दूर करने के लिए वह गुरु विश्वामित्र के पास गए। इस पर उन्होंने कुशानगरी (कन्नौज का प्राचीन नाम) के उत्तर में जंगल में तपस्या कर रहे मुनि चिंतामणि के पास जाने को कहा। भगवान श्री राम अपने पुष्पक विमान से माता सीता, लक्ष्मण के साथ कन्नौज आए। विश्वामित्र और हनुमान भी उनके साथ थे। यहां चिंतामणि घाट पर उन्होंने ब्राह्मणों को भोज कराया। माता सीता ने अपने हाथों से भोजन बनाया था। इस स्थान को सीता रसोई के नाम से आज भी जाना जाता है। वर्तमान में इसके भग्नावशेष मौजूद हैं। यहां पर सीता के भी चरण बने हुए हैं। इसके अलावा यज्ञशाला भी है, जहां प्रभु राम ने यज्ञ किया था। बता दें कि मुनि चिंतामणि विश्वामित्र के पिता राजा गाधि (कन्नौज के राजा) के कुलगुरु थे। लोगों का दावा है कि श्रीमद् भागवत में इसका उल्लेख मिलता है। लोग मानते है कि कल्याण के लिए भगवान श्री राम ने अपनी चरण पादुका यहां छोड़ी थी।मंदिर के प्रधान पुजारी रामसेवक दास बताते हैं कि भगवान श्रीराम ने अपनी चरण पादुकाएं ब्राह्मणों के कल्याण के लिए चिंतामणि घाट पर छोड़ीं थीं। आज भी यहां बने मंदिर में भगवान की चरण पादुकाएं स्थापित हैं। मंदिर परिसर में करीब दस जगह भगवान के चरण चिन्ह हैं, जो शिलाओं पर आज भी विद्यमान हैं। दीपावली और हर रविवार को भक्त लोग भगवान की चरण पादुकाओं का पूजन करते हैं और यहां की चरण रज को माथे से लगाते हैं। लोग ये भी बताते है कि घाट पर हजारों साल पुराना कदंब का पेड़ खड़ा है। पेड़ की छाल निकालने पर तने पर राम नाम की आकृति उकर आती है। प्रत्येक रविवार को लोग यहां पूजा करने आते हैं। मान्यता है कि यहां हर मनोकामना पूर्ण होती है। 50 वर्षीय नंदराम का कहना है ये घाट पहले रामघाट के नाम से जाना जाता था। कदंब के पेड को ग्रामीण राम नाम से पुकारते हैं।पृथ्वीराज बताते हैं कि पुरखों से हमने यहां प्रभु के आने की बात सुन रखी है। वो कहते हैं जब से गांव चिंतामणि बसा है, तब से वह उसे पेड़ को उसी आकार भी देख रहे हैं।

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