इलाहाबाद

अकबर इलाहाबादी के बहाने से

मुझे हमेशा अफ़सोस रहता है कि मेरा जन्म इलाहाबाद में क्यों नहीं हुआ। अगर होता तो मै भी थोड़ा-बहुत अकबर इलाहाबादी की तरह इतरा कर चल सकता था। तब मेरा नाम शायद राकेश इलाहाबादी होता,लेकिन सबका नसीब नहीं होता इलाहाबाद में पैदा होना। अकबर इलाहाबादी यदि आज इलाहबाद में पैदा होते तो उनका नाम तय है सरकार अकबर इलाहाबादी नहीं रखने देती क्योंकि अब कानूनन इलाहाबाद नाम का कोई शहर बचा ही नहीं है। जैसे मुगलों ने प्रयागराज को इलाहाबाद कर दिया था वैसे ही आज के मुगलों ने फिर से इलाहाबाद को प्रयागगराज कर दिया है।
नाम बदलने की हिम्मत और हैसियत केवल सत्ता के मुगलों की होती है । पहले भी होती थी और आज भी होती है। मुगलों को खुश करने के लिए उनके मातहत अब शायरों के नाम भी बदलने का हौसला दिखा देते हैं। बड़े-बड़े काम करने के बजाय नाम बदलना सबसे आसान और सबसे बड़ा काम है। नाम बदलना कोई अपराध नहीं है लेकिन कोई पुण्यकार्य भी नहीं है । सत्ता के मुगल जब चाहते हैं तब किसी भी शहर का टेशन का नाम बदल देते हैं। माया मेम से लेकर योगी आदित्यनाथ को इस काम में महारत हासिल है। हमारे मामा शिवराज सिंह भी नाम बदलने के मामले में पीछे नहीं है।
बहरहाल बात अकबर इलाहाबादी के नाम बदलने की है । उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग ने अपनी वेबसाइट पर अकबर इलाहाबादी को अकबर प्रयागराजी कर दिया। एक तरह से अच्छा ही किया। अकबर इलाहाबादी की आत्मा बड़ी खुश है । बीती रात अकबर साहब हमारे ख़्वाबों में आये थे । कहने लगे-
मौत आई इश्क़ में तो हमें नींद आ गई
निकली बदन से जान तो काँटा निकल गया
हमने कहा अमां ! ऐसे आहें क्यों भरते हो नाम ही तो बदला है ,वो भी पीछे वाला ,अकबर को तो नहीं छेड़ा ? आत्मा फिर बोली –
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी .

अकबर इलाहाबादी जैसा मस्त शायर कोई दूसरा हुआ हो तो मुझे पता नहीं,लेकिन मुझे वे बहुत पसंद हैं। उनसे रूबरू होने का तो सवाल ही नहीं उठता। वे 1846 में जन्मे थे और बन्दा 1959 मे। वे हमारी पैदाइश से बहुत पहले 1921 में चलते बने ,लेकिन उनकी आत्मा आज भी बहुत से मरे हुए लोगों को आवाज देती रहती है। उनकी आत्मा सरकारी हिमाकत से दुखी थी ,उसने कहा –
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
अकबर इलाहाबादी बोले सरकार का काम जो है सो सरकार करती है,शायर का काम शायर करता है। सरकार के काम लोग वक्त के साथ भुला देते हैं लेकिन शायर का काम सदियों तक आबाद रहता है । बोलता रहता है। मैंने कहा-आप सही फरमाते हैं। अकबर की आत्मा मूड में थी सो बोली -एक शेर और सुनोगे ?
मैंने कहा -‘कोई हर्ज नहीं ,हम तो पैदा ही सुनने और सुनाने के लिए हुए है।’ आत्मा मुस्कराई ,बोली तो सुनो –
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
बला के पेच में आया हुआ है
शेर मेरे सर के ऊपर से जाने लगा तो अकबर साहब की आत्मा मुस्करा उठी । कहने लगी-‘ तुम्हारा भी योगी जी की तरह जुल्फ-बुल्फ से कुछ लेना -देना नहीं है शायद !।’
मै मुस्करा दिया। आत्मा ने कहा मेरा नाम क्यों बदला ,मेरा कुसूर क्या था जबकि –
मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अकबर इलाहाबादी की आत्मा की इस सफाई को सुनकर मै अचरज में पड़ गया । सोचने लगा काश ! योगी सरकार इस शेर का मतलब समझ लेती। मैंने आत्मा को कुरेदा-आपकी हमारे योगी जी के बारे में क्या राय है सरकार ?
आत्मा मुस्कराई बोली -‘बहुत शरारती हो ,मुझे उलझाना चाहते हो। लेकिन मै खामोश नहीं रहता । कुछ न कुछ कहता जरूर हूँ। तुम्हारे सवाल का जबाब मेरे इस शेर में है ,सुनो-‘
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
अकबर साहब को जिन लोगों ने सुना होगा वे नसीब वाले होंगे। लेकिन जिहोने उन्हें पढ़ा होगा वे भी कम नसीब वाले नहीं हैं । बदनसीब तो वे हैं जिन्होंने उन्हें न सुना,न पढ़ा और उनका नाम बदल दिया। अकबर साहब कहते हैं –
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं
बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीदार नहीं हूं
अकबर इलाहाबादी का नाम अकबर प्रयागराजी किये जाने पर हंगामा हुआ तो योगीराज की अक्ल की बत्ती जली । उन्होंने मामले की जांच के आदेश भी दे दिए । लेकिन इससे क्या होना है ? जो मूर्खता होना थी ,वो तो हो चुकी भाई। बावजूद इसके चचा अकबर इलाहाबादी मस्त है। उनकी मस्ती उनकी आत्मा में भी झलकती है । वे कहते हैं –
सीने से लगाएं तुम्हें अरमान यही है
जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है
अकबर साहब ने हर मौजू पर शेर कहे। वे दार्शनिक भी थे और जबरदस्त व्यंग्यकार भी। उनका ये शेर तब वायरल हुआ था जब दुनिया ने सोशल मीडिया के बारे में सोचा तक नहीं था । अकबर इलाहाबादी कहते हैं –
हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
अकबर साहब का इशारा पीयूष जैन जैसों के लिए नहीं बल्कि उनके संरक्षकों के लिए भी है । वे अखबार की ताकत के हामी थे। कहते थे –
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
अकबर साहब के मश्विरे के बाद देश में आजादी से पहले और आजादी के बाद कितने अखबार निकाले गए बताना कठिन है । अकबर साहब ने इलाहाबाद की आवाज को तब बुलंद किया जब देश गोरों का गुलाम था ,लेकिन अकबर साहब तो अकबर साहब थे। अब उन्हीं अकबर इलाहाबादी को कोई कूढ़ मगज अकबर प्रयागराजी करना चाहे तो उस पर हंसा ही जा सकता है। यूपी की सरकार नहीं जानती कि अलाहाबाद का कोई अकबर कभी मरता नहीं है
अकबर इलाहाबादी पेशे से शायर नहीं जज थे लेकिन उन्हें मकबूल और मशहूर शायरी ने किया था। इससे पहले की अकबर इलाहाबादी की आत्मा से हमारी गुफ्तगू का सिलसिला जारी रहता ,पड़ौस में बिल्लियों के झगड़ने की आवाज से हमारी नींद टूट गयी। आँख खुलते ही आत्मा नदारद और हम अकेले। अब हमें भी डर लगता है की सत्ता के मुगल आने वाले दिनों में आम जनता की बल्दियते बदलने की मुहीम शुरू न कर दे। सत्ता के मुगलों के हाथ कौन पकड़ता है ?
@ राकेश अचल

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